Saturday, January 31, 2009

"देशवासियों तन्द्रा तोड़ो"

देशवासियों तन्द्रा तोड़ो।
आखें खोलो आलस छोड़ो।
उठो जगो बढ़ चढ़ो दुश्मनों
के रुण्डो मुण्डों को फोड़ो।

खुली चुनौती मिली मुम्बई
की कर लो स्वीकार ।
बचना पाये तुमसे कोई
घुसपैठी गद्दार
अगर हिफ़ाजत करे दुश्मनों
की कोई सरकार।
जड़ से उसे उखाड़ फेंकना
और करना ये हुँकार-
भारतमाता की जय।

आस्तीन में छिपे भुजंगों
के फण त्वरित मरोड़ो
जहर भरा है जितना भी
सबका सब आज निचोड़ो
छोड़ो छोड़ो देशवासियों
कायरता सब छोड़ो।
पर मत छोड़ो देशद्रोहियों
को यूँ खुला ना छोड़ो।
वर्ना साल गुलामी के
फिर फिर आयेंगे करोड़ों

पृथ्वीराज के वंशज तुम
पर क्षमा इन्हें मत करना ।
भारतमाता को वरना फिर
नरक पड़ेगा भरना॥
वीर शिवाजी से सीखो
दुश्मन की छाती चढ़ना।
चेतक से राणा प्रताप से
सीखो रण में बढ़ना॥

विश्वपटल पर स्वच्छ छवि की
छोड़ो चिंता छोड़ो।
तोप टैंक ले चढ़ो शत्रु पर
भ्रम सब इसके तोड़ो
दौड़ो दौड़ो धरा गगन में
बादल दल पर दौड़ो।
लेकर विजयी विश्व तिरंगा
त्रिभुवन का रुख मोड़ो॥

3 comments:

  1. बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  2. बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारे।

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  3. sandeep ji apki kavita padi padkar aisa laga jaise ye vichar apke na hokar pure bharatvasiyon ke hai iss samay bharat ko aap jaise kavi ki avashyakta hai jo soti janta ko jaga sake or iss sampurn bharat ka kaya kalp kar sake meri bhagvan se prarthna hai ki aap din duni rat choguni unnati kare meri shubhkamnaye apke sath hai. jai hind jai bharat.

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