आचार्य संदीप कुमार त्यागी "दीप"
भोली सूरत नीयत बुरी।
मुँह में राम बगल में छुरी॥
ढोंगी बदलें काँचुरी।
चल सपनीली चातुरी॥
छाती पै ही दलते मूँग।
हर मछली पै मारें ठूँग॥
चक्का जाम किया भक्ति का
बगुले भक्त, हैं धर्मधुरी।
कुत्ते सब कुछ सूँघ रहे।
भगत आलसी ऊँघ रहे।
नहीं किसी को खबर कोई,
बजे चैन की बाँसुरी॥
जम जाते मंचों पै भाँड,
पी पी करके फ़ोरेन ब्रांड।
हरे खेत में जैसे सांड,
सच्ची बात लगे बुरी॥
भौंडे भजन फिलमिया धुन।
कान पक गये हैं सुन-सुन॥
धंधा है जागे की रात,
खुलें पर्स की पाँखुरी॥
Sunday, January 18, 2009
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