आचार्य संदीप कुमार त्यागी "दीप"
मन पंछी के कभी कल्पना पंखों को सहलाये,
बन कर कभी किरण आशा की अरुण नभस पर छाये।
स्वप्न-सुन्दरी सपनों में तू प्रेम सुधा बरसाये,
रचना गीत प्रणय के कविवर! कह मुझको उकसाये।।
कुंचित स्वर्ण केश अवगुंठन तेरे चंद्र वदन का,
यदि देख ले भरमा जाये चंदा नील गगन का।
इठलाये इतराये जब तू मन ही मन मुसकाये,
कामदेव का तरकस खाली तीरों से हो जाये।।
कोमल कमल करों में कंचन कामिनी कलश उठाकर,
छलक छलक छलकाकर मदिरा रूप मधुप मन भाकर।
नम्र पयोधर तृषित अधर धर नव उल्लास जगाये,
रोम रोम में प्यास प्रेम की तू अद्भुत भड़ाकाये।।
प्राण प्रिये सच! प्रण करता हूँ प्रणय गीत प्रणयन का,
रसिक बना ले पर मुझको तू निज सौंदर्य सुमन का।
गूँजे प्रणय गीत मेरा यति, गति, लय, सुर मिल जाये,
प्रेम ताल पै यदि झूम तू बाँहों में आ जाये।।
Tuesday, January 20, 2009
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