आचार्य संदीप कुमार त्यागी "दीप"
जाग जाग जाग मनवा जाग जाग जाग,
नींद ये अज्ञान की तू त्याग त्याग त्याग।
देह गेह में सुलग रही है देख काम –
वासना की आग से बच भाग भाग भाग॥
लोभ क्रोध मोह मद हैं दुष्ट भस्मासुर
भोले भाले भोले शंभू होले तू चतुर।
मोहिनी उमा बनेंगे विष्णु नहीं आज
चेत चेत डस न लें तुझे तेरे ही नाग॥
धर्म चेतना विवेक सच्चे मित्र हैं
भ्रम नहीं भव सिंधु में भँवर विचित्र हैं।
है आग का दरिया न लिपट लपटों में लंपट
माया से रहना सावधान संग नहीं लाग॥
तृष्णा तुझे दौड़ा रही मृग सी हरेक दम
जग मृग मरीचिका से बच ले तू कदम कदम।
वरना तेरा वज़ूद जल्द खो ये जाएगा।
पापों के गर्त में गिराएगा तुझे रँग राग॥
Tuesday, January 20, 2009
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