आचार्य संदीप कुमार त्यागी "दीप"
बगुले भगत हैं मंदिरों में टूटने।
देखो प्रसाद के लिए सर फूटने लगे।
दंगा फ़साद है कहीं, कहीं पै हो हल्ला।
भगवान के, भक्तों के छक्के छूटने लगे॥
काजू की बर्फीयों के डब्बे ले उड़ा कोई।
कोई खड़ा चने लिए है जूठनें लगे॥
बकबक करे कोई, कोई और दे रहा धक्का
गंदे कोई हैं हाथ कलश घूँटने लगे॥
पण्डित सभी खण्डित, जनेऊ है नहीं शिखा।
पढ़ते हैं ऐसे मंत्र, वेद रूठने लगे॥
पूजा में ध्यान मंत्र से बढ़कर है दक्षिणा।
चक्कर में दक्षिणा के चाल कूटने लगे॥
विद्वान विप्र संत का कटता टिकट हवई।
परधान बने चोर सब खसूटने लगे॥
कैसे टिकेंगे देवता देवालयों में आज।
हैं लाज सब भगवान की भी लूटने लगे॥
Sunday, January 18, 2009
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