सत्य अहिंसा मूलमंत्र उद्गाता गाँधी।
राष्ट्रप्रेम का यज्ञानल धधकाता गाँधी॥
अमरहुतात्मसपूतों में स्वातंत्र्यभाव भर
आन्दोलन आँधी सा गजब उठाता गाँधी॥
उन्नीस सौ इक्कीस ब्रिटिश सत्ता का पत्ता-
पत्ता तितर बितर हो गया गिरी महत्ता
सारी की सारी ही खो गई बुद्धिमत्ता
धू धू कर जल उठीं दुकानें कपड़ा लत्ता
ध्वस्त हो गया माल विदेशी पानी पत्ता।
नहीं आगरा दिल्ली बाम्बे या कलकत्ता।
झुलस गये लंदन तक के गोरे अलबत्ता
भाँप गये विद्रोह विकट भड़काता गाँधी
पुतली बाई की पुतली सा प्यारा प्यारा
कर्मचंद गाँधी के नैनो का उजियारा॥
तप: पूत अवधूत महात्मा गाँधी न्यारा।
मोहनदास करमचंद गाँधी बना हमारा।।
राष्ट्रपिता बापू भारत का हृदय दुलारा ।
जिसने तन मन धन जीवन सारा का सारा॥
वारा भारत माँ की आज़ादी हित वारा
गूँज रहा है हृदयों में उसका ही नारा
देशजातिसेवा की याद दिलाता गाँधी॥
Saturday, January 31, 2009
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