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Tuesday, March 3, 2009

प्रहरी सजग हम

प्रहरी सजग हम ,कर्णधार देश के हैं ,
खुद मिट जायेंगे या रिपु को मिटायेंगे।
कोई मातृभूमि पर ,नजर उठायेगा तो,
कर देंगे नेत्रहीन,फाँसी प झुलायेंगे।।
जलते संदीप सम करते प्रकाश सदा
चाहेगा बुझाना कोई उसी को बुझायेंगे।
धाक पाक हम पर चाहेगा जमाना यदि
कर देंगे राख उसे खाक में मिलायेंगे।।

कंटक बिछाने वाले काटने पड़ेंगे हाथ
काँटे जिनसे वो आगे नहीं बिछा पायेंगे।
तोड़कर पाँव पंगु करना पड़ेगा उसे
जिन्हें आगे हिन्द वो नहीं बढ़ा पायेगा।।
साठ गाँठ कितनी ही करले विदेशों से पै
भारत की गरिमा को नहीं गिरा पायेगा।
विश्व का रहेगा गु्रु,भा-रत भारत देश
ज्ञान का संदीप कोई बुझा नहीं पायेगा।।

Saturday, February 28, 2009

हो जाये सरकलम कलम ये नहीं रुकेगी।।

रुक जाये ये सूर्य, चाँद चाहे रुक जाये।
रुक जाये ये सृष्टि चक्र चाहे रुक जाये।।
रुक जाये ये वायु वेग जल का रुक जाये
रुक जाये प्रश्वास श्वास चाहे रुक जाये
जो मुझमें संदीप ज्योति वह नहीं बुझेगी
हो जाये सरकलम कलम ये नहीं रुकेगी।।


उदय अस्त न होवें चाहे सूरज चाँद सितारे,
गंगा यमुना सूखें चाहे सूखें सागर सारे।।
उथल पुथल हो धरती चाहे काल खड़ा हो द्वारे ,
हो जाये सर कलम कलम ना कभी रुकेगी।।