आचार्य संदीप कुमार त्यागी "दीप"
परिणय के धागे में प्रियतम प्रणय-प्रसून पिरो लें ।
मधु-मानस-मण्डप में अब हम मधुरिम-मधुरिम लें ।।
सस्वर मंत्रगान सा करते बन पर्जन्य-पुरोहित,
अभिमंत्रित अमृत वर्षण कर करते ताप तिरोहित ।
मधुर-मिलन के परम वचन हम सप्तपदी पर बोलें ।।
देखो हरित् धरित्री पर अति हर्षित नील गगन है ,
क्षितिज पार आलिंगन करता कैसा मुदित मगन है ।
आओ हम भी बीज आज अद्वैत प्रेम का बो लें ।।
देख रही ये अपलक सुभगा ले हिय प्रिय उन्माद
मदिर मदिर ये अधर चाहते केवल प्रेम-प्रसाद ।
हीरक-हार हृदय सुन्दरतम हर अवगुण्ठन खोलें ।।
Tuesday, January 20, 2009
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