आचार्य संदीप कुमार त्यागी "दीप"
भेड़िये ओसामा या सद्दाम-से,
देख घुस जाता है अपनी भाड़ में॥
भेड़ किंतु पाक भारत को समझ
हाँकने की नित रहे जुगाड़ में॥
भाड़े के हैं टट्टू इस पै बेशुमार
भीड़ को भुनवाये ये जालिम-जिग़र।
रोज़ तोपों से उजड़वाये हजारों
बंकरों का नाम ले मासूम घर॥
हर फटे बम में मिला बारूद इसका
हाथ इसका ही मिला हर राड़ में॥
कौन चँद करमों के कारण करमचंद
गाँधी मोहनदास की पुण्यस्थली॥
पर अपावन पाँव इसके पड़ गये
और न दहली हाय! बिल्कुल देहली॥
कर बहाना बम्ब का बेइज्जत किया।
क्यों अहिंसक बापू को खिलवाड़ में॥
सूँघ सब कमबख़्त! है आया वहाँ
खेल गंदा खेलने की ताड़ में॥
कुत्ता! बापू की समाधि जा चढ़ा,
हाय! अमरीकी सियासती आड़ में।
दरअसल हर एक कुत्ते की तरह
जी फँसा इसका भी सूखे हाड़ में॥
Sunday, January 18, 2009
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