Friday, June 4, 2010

मुक्तक इश्किया कोरी जवानी!

चटख रंग प्यार का कोरी जवानी पर चढ़ा ऐसा।
बदन सुन्दर सलोना सोनजुही सा खिला ऐसा।
सुनहरी हो उठी सुबहा, बसन्ती रूप का सागर,
मचल उट्ठा दिवाना दिल हुआ है इश्किया ऐसा॥

उनींदी शबनमी अँखियाँ कनखियों में वो बतियाये।
हैं लब पुरसुर्ख़ मस्ती से मगर फ़िर भी वो शर्माये।
मिलन की रात की ले ख़ास खबरें चाँद सा चेहरा
बड़ी आहिस्ता आहिस्ता सनम चिलमन को सरकाये।