Wednesday, February 4, 2009

मानस पुत्री कविता



मूर्त्त अमूर्त्त चराचर जग के चित्र विचित्र स्वतः चित्रित हों।
चचंल चलचित्रों की भाँति भाव चित्र जब एकत्रित हों॥
मनस पटल पर प्रगट तभी मानसपुत्री कविता होती है।
क्रांतदर्शी कवि के सुवर्णमय सृजन गर्भ में यह सोती है॥

सुचिर रुचिर नवरस संयुक्ता उत्तम ध्वनिपद-अवली युक्ता,
छ्न्दशैली गुणरीति अनूठी सृष्टि नियम से बिल्कुल मुक्ता।
व्यष्टि
व्यष्टि में व्यक्त समष्टि कविता के द्वारा होती है,
सदा मंत्र दृष्टा हृदयों में जगी जगी कविता ज्योती है॥

क्या है कविता की परिभाषा निश्चित क्या सविता की आशा,
अंतर्बाह्यजगत परिभाषित कैसे करे शब्द की भाषा॥
वेद पुराण काव्यग्रंथों में सदा काव्य-चर्चा होती है,
लेकिन क्या कवि मानस पुत्री कविता पुस्तक में सोती है।

यदि कविता को पाना है तो अपना हृदय टटोलो तुम,
कुण्डलियाँ गिरधर खोलेंगे मीरा से गर हो लो तुम॥
खुसरो तुलसी सूर कबीरा रहिमन के मन होती है ,
कविता ब्रह्मानंद से बढ़िया प्रेम बीज मन बोती है॥

कविता तो है भूखे नंगेभिखमंगों की खोली में,
कविता तो हर देशभक्त के लाल लहू में गोली में॥
सघन जघनकच कुच कलशों पर जिनकी कविता होती है।
उनके देश की आने वाली पीढ़ी सदियों रोती है॥
















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