आचार्य संदीप कुमार त्यागी "दीप"
दिया नेक वारि-दान वट-द्रुम-दल-को औ,
गुरुकुल वाटिका जिलाये खूब हरि हैं।
हरियाली हरि-तृतीया है ये निराली अहो,
महिमा अनूठी दिखलायें खूब हरि हैं।।
काट छाँट डाले कोटि-कोटि कष्ट कण्टक हैं,
फूल खुशियों के ये खिलाये खूब हरि हैं।
सहृदय हृदय है हरि दर्श पाके ’दीप’
हरे हरि हरि से मिलाये खूब हरि हैं।।
हरि के इशारे बिना इस जहाँ में किसी के,
जीवन का नहीं चला स्यंदन है करता।
प्राणों का भी प्राण प्राणी पाते सभी त्राण हरि,
बिन कौन प्राणी यहाँ स्पन्दन करता।।
चन्द नहीं चन्दन है हरि भाव चन्दन है,
धूपदीप बिना ’दीप’ वन्दन है करता।
आनन्दित हो उठा है हरि दर्श पाके तव,
नन्दन सुमन अभिनन्दन है करता।।
Sunday, January 18, 2009
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