सन् इकत्तीस की है सत्ताईस फरवरी,
बड़ी मनहूस न था पता ये आज़ाद को।
सुखदेवराज को ले साथ अलफ्रेड पार्क,
बैठ के विचारते थे दल के विषाद को।।
पास से गुजरते जो देखा वीरभद्र को तो,
चौंक पड़े चन्द्र तज दिया था प्रमाद को।
शायद न देखा हमें, अभद्र ने यह सोच,
दोनों ने बढ़ाया आगे अपने संवाद को।।९७।।
सनसनाती आ धँसी सहसा ही गोली एक-
जाँघ में, आजाद की भृकुटि तन गई थी।
गोली का जवाब गोली मिला, हाथों हाथ हुआ-
हाथ ‘‘नॉट बावर’’ का साफ, ठन गई थी।।
पीछे पेड़ के जा छुपा झपट के झट ‘‘नाट’’
पुलिस के द्वारा ले ली पोजीशन गई थी।
घिसट-घिसट के ही ले ली ओट जामुन के,
पेड़ की आजाद ने भी, बात बन गई थी।।९८।।
दनादन गोलियों की हो गई बौछार शुरू,
पुलिस न थाम सकी शेखर के जोरों को।
दाईं भुजा बेध गोली फेफड़े में धँस गई
तो भी भून डाला बायें हाथ से ही गोरों को।।
साफ बच निकला था साथी सुखदेवराज,
अकेले आजाद ने छकाया था छिछोरों कों।
एस०पी० विश्वेसर का जब उड़ा जबड़ा तो,
हड़बड़ा उठे खौफ हुआ भारी औरों को।।९९।।
था अचूक उनका निशाना बायें हाथ से भी
गोरों को चखाया खूब गोलियों के स्वाद को।
चन्द्र ने अकेले ही पछाड़ा अस्सी सैनिकों को,
होता था ताज्जुब बड़ा देख के तादाद को।।
दिन के थे बज गये दस यूँ ही आध घंटा,
गुजर गया था जूझते हुए आजाद को।
शनैः शनैः शिथिल शरीर हुआ गोलियों से,
भर भी न पाये पिस्तौल वह बाद को।।१००।।
शेखर की तरफ से स्वयमेव गोलियों की,
दनदन कुछ देर बाद बंद हो गई।
फुर्र हो गया आजाद पंछी देह रूपी डाली,
धरती पै गिरकरके निस्पंद हो गई।।
बात छूने की तो दूर पास तक भी न आये,
सभी, गोरों की तो गति-मति मंद हो गई।
दागी थी दुबारा गोली कायरों ने लाश पर,
दहशत दिल में थी यों बुलंद हो गई।।१०१।।
ब्रिटिश-सत्ता का पत्ता-पत्ता बड़ी बुरी भाँति,
अरे ! जिसकी हवा से काँपे थर-थर था।
खौफ भी था खाता खौफ, खतरा था कतराता,
जिससे बड़े से बड़ा डरे बर्बर था।।
गिरेबाँ पकड़ के गिराये गद्दी से गद्दार,
पँहुचाया जिसने गदर दर-दर था।
किया था जवान वो जेहाद फिर आजादी का,
जालिमों के जुल्मों ने जो किया जर्जर था।।१०२।।
परम पुनीत नवनीत सम स्निग्ध शुभ्र,
सरस सुसेव्य शुचि सुधा सम पेय है।
शशि-सा सुशीतल, अतीव उष्ण सूर्य-सम,
उग्र रुद्र सा, प्रशान्त सागरोपमेय है।।
सर्वदा अजेय वह, जिसका प्रदेय श्रेय,
रहा भारतीय जन मानस में गेय है।
धन्य-धन्य अमर आजाद चन्द्रशेखर वो,
जिसका चरित्र चारू धरम धौरेय है।।१०३।।
कोड़े खूब झेले पेले कोल्हू पाया कालापानी,
दे दीं अनगिन कुर्बानियाँ जेहाद में।
भूख-प्यास भूल भटके जो भक्त उम्रभर,
देशहित पायीं परेशानियाँ प्रसाद में।।
माँ की आबरू के लिए ही जो जिये मरे, बस
उन्हीं की सुनाते हैं कहानियाँ उन्माद में।
करते अखर्व गर्व सर्व भारतीय, पर्व-
पावन मनाते बलिदानियों की याद में।।१०४।।
मोम हो गई थीं गुलामी की वजह से जो भी,
बदल गईं वही जवानियाँ फौलाद में।
गोरों के गुरूर एक चुटकी में किये चूर,
हो गये काफूर वे ब्रिटानियाँ तो बाद में।।
फूँकी नई जान जंगे आजादी हो उठी जिंदा,
जादू था, अजब थी रवानियाँ आजाद में।
करते पूजन जन-जन, मन-मंदिर में,
बस रह गयीं है निशानियाँ ही याद में।।१०५।।
प्रभो ‘चन्द्रशेखर’ आदर्श हों हमारे सदा,
प्राणों की पिपासा, बुझे प्रेमाह्लाद भाव से।
परहित नित हो निहित प्राणियों में सब,
विरहित जन-मन हो विवाद भाव से।।
दमके ‘संदीप’ दिव्य द्युति नव जीवन में,
धधके नवल क्रांन्ति उन्माद भाव से।
वाणी का विलास औ हृदय का हुलास लिए,
कवि-काव्य का विकास हो आजाद भाव से।।१०६।।
जय-जय विस्मय विषय चन्द्रशेखर हे !
रण-चातुरी से तेरी रिपु गया हार है।
जय-जय विनय निलय चन्द्रशेखर हे !
झुका आज चरणों में सकल संसार है।।
जय-जय सदय हृदय चन्द्रशेखर हे !
दिव्य आचरण तब महिमा अपार है।
जय-जय अभय आजाद चन्द्रशेखर हे !
चरणों में विनत नमन बार-बार है।।१०७।।
हे प्रकाश पुंज चन्द्रशेखर प्रखर तव-
पाने को कृपा-प्रसाद फैली शुभाँजलि है।
अमर सपूत क्रान्ति दूत चन्द्रशेखर हे !
शुभ चरणों में मेरी यह श्रद्धाँजलि है।।
अचल हिमादि्र-सम द्रुत मनोवेग-सम,
अनुपम जीवट हे तुम्हें पुष्पाँजलि है।
अद्वितीय नेता हे स्वातन्त्र्य भाव चेता, जेता,
तुमको ‘संदीप’ देता स्नेह भावाँजलि है।।१०८।।
लेखन-सृजन है कठिन, कवि द्वारा प्रभो !
आपकी महती कृपा-शक्ति-काव्य-प्राण है।
कल्पना तुम्हीं हो तुम्हीं कविता हो कवि तुम्हीं,
‘दीप’ काव्य का प्रकाश होना वरदान है।।
‘‘चन्द्रशेखर आजाद-शतक’’ सुपूर्ण हुआ,
परम प्रसन्न मन धरे तव ध्यान है,
प्रभो क्षमावान क्षमा कीजिए अजान जान,
बालक से त्रुटियाँ हो जाना तो आसान है।१०९।।
Friday, February 27, 2009
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मैं अहसान फरामोश हूँ मैं शर्मिंदा हूँ , मै आजाद को याद न रख सका
ReplyDeleteBas yahi kahungi........aapka sadhuwaad aur shaheedon ko shat shat pranaam.
ReplyDeletebahut bahut aabhaar.