Thursday, February 12, 2009

गर्म अश्कों में जल रही होंगी

गर्म अश्कों में जल रही होंगी,
सुर्ख़ आँखें पिघल रही होंगी।
ले मिलन की नवीन उम्मीदें,
आहें दिल से निकल रही होंगी॥

नज़र से वो सभी की बच बचके,
मुँह गीले सिरहाने पै रख के।
पड़ीं होंगी जुदाई में तनहा,
सिसकियाँ उनकी चल रही होंगी॥

सर्द रातों में ठंडे बिस्तर पर
सोईं होंगी भला कहाँ पलभर।
सिलवटें करवटें बदलने से
बिछौने में उभर रही होंगी॥

मिलन की रात के सुहाने पल
याद कर होएँगी कभी विह्वल।
अँधेरे में मधुर होठों की पाँखुर,
विकल खुद ही मसल रही होंगी।

हमारी ले छवि खयालों में
अँगुलियाँ वो सुनहरे बालों में।
कभी गोरे गुलाबी गालों में
छुआ छुआ सिहर रही होंगी॥

2 comments: