Tuesday, March 31, 2009

मसीहा:आचार्य संदीप त्यागी


साज ही न बजता जिस पै ,वो भी कोई वीणा है,
जिसमें ना चमक हो कोई,वो भी क्या नगीना है।
क्या जतन बिना भी मनुवा जीना कोई जीना है।।

पगले नाम जिन्दगी ना ऐश औ आराम का,
मस्ती भरी सुबहा का, ना रंगीली शाम का।
असलियत में जिंदगी तो खून औ पसीना है।।

तिनका तिनका जोड़कर पंछी भी घर बनाते हैं,
दौड़ धूप करके दिन भर दाना पानी पाते हैं।
तूने हक मगर क्यों हाय दूसरों का छीना है।।

झंझटों को झेलकर भी हँसते हँसते जीते जो,
बांट कर सभी को अमृत खुद जहर हैं पीते जो।
कहता जग मसीहा उनको भूलता कभी ना है।।

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