नये साल के जश्न में लोग सभी खुशहाल।
दुल्हनिया उम्मीद की पहिने चोला लाल॥
लालपरी की बोतलों में पानी सा लाल।
लल्लू जिस पै लुटा रहे पैसा बिना मलाल॥
स्वागत में नये साल के छूटी स्वतः शरम।
पी बोतल बूढ़े बदन होने लगे गरम ॥
हट्टी पर लहरा रहे उल्लू गाँधी छाप।
जबकी बापू मानते थे शराब को शाप॥
कांग्रेस को मिल गया अजी दूसरा चांस।
गाँधीवादी कर रहे कुर्सी संग रोमांस॥
गाँधीवादी महामहिम नारायण के संग।
गणिकाएं लख अंतरंग है गणतंत्र भी दंग॥
तापमान रहे संतुलित लगे तनिक ना ठंड।
बना बहाने बेतुके फूंक रहे सब फंड ॥
बिना दवा के मर रहे लोग रोज़ के रोज़ ।
कहती है सरकार पर बड़ा आर्थिक बोझ॥
सरकारें करवा सकीं नहीं दवा उपलब्ध।
स्वाइन फ्लू ने कर दिया यू एन तक स्तब्ध॥
इंतजाम कैसे करें मंदी की है मार।
छोटे मोटे बड़े बड़े बंद हुए व्यापार॥
साल गया यह सालता कहें सियाने लोग।
अमरीका तक को लगा बुरा रिसेशन रोग॥
दो हजार दस ईसवी हुआ दीप प्रारम्भ।
आशा है अब मिटेगा शीघ्र सभी छ्ल दंभ॥
Friday, January 1, 2010
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उम्मीद पर ही दुनिया कायम है .. आपके और आपके परिवार वालों के लिए नववर्ष मंगलमय हो !!
ReplyDeleteबढ़िया दोहे!!
ReplyDeleteवर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
आपको और आपके परिवार के लिए नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteअवनीश गुप्ता
बहुत सुंदर दोहे हैं संदीप जी..खास कर..यह
ReplyDeleteसाल गया यह सालता कहें सियाने लोग।
अमरीका तक को लगा बुरा रिसेशन रोग॥
तुलसी बाबा ने "व्यापना" कहा, आपने "सालना"..;उम्मीद है कि नववर्ष में दैहिक, दैविक, भौतिक ताप कम व्यापेंगे या नहीं व्यापेंगे..समाप्ति की आशा तो कम है।
आपको परिवार सहित नववर्ष की शुभकामनायें..
शैलजा