Wednesday, February 18, 2009

सो रहा क्यों नौजवां ?

है अशान्त देश फिर भी सो रहा क्यों नौजवां ?
बीज खुद ही दासता के बो रहा क्यओं नौजवां ?

सरहदों पे शत्रुसेना युद्ध के लिए खड़ी।
बिलख रही है सभ्यता व संस्कृति कहीं पड़ी।।
कायरों की भाँति किन्तु रो रहा क्यों नौजवां ?

शिवा प्रताप जैसे वीर लुप्त हो गये कहाँ।
घोष वन्देमातरम् प्रलुप्त हो गये कहाँ।।
कामी बनके देश को डुबो रहा क्यों नौजवां ?

जम्मू-काश्मीर धू-धु करके दखो जल रहा।
पंच नद प्रदेश प्यारा मोम सा पिघल रहा।।
हो खड़ा समय को व्यर्थ खो रहा क्यों नौजवां ?

चाहे तो तूफान का भी तू बदल दे आज रूख।
हिमाद्री को हिला दे और दुःख को बना दे सुख।।
फिर भी तू हताश आज हो रहा क्य नौजवां ?

2 comments:

  1. आज की परिस्थितियों में सचमुच नौजवानों को ही जागने की जरूरत है....बहुत अच्‍छी रचना।

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  2. बहुत बढ़िया रचना.

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