Wednesday, February 11, 2009

समर्पण

समर्पण
दिया नेक वारि-दान वट-द्रुम-दल को औ,
गुरुकुल-वाटिका जिलाये खूब हरि हैं।
हरियाली हरि-तृतीया है ये निराली अहो,
महिमा अनूठी दिखलाये खूब हरि हैं।।
काँट छाँट डाले कोटि-कोटि-कष्ट-कण्टक हैं,
फूल खुशियों के ये खिलाये खूब हरि हैं।
सहृदय हृदय हैं, सदय हैं हरि ‘दीप’
हरि ही की कृपा ने मिलाये खूब हरि हैं।।
हरि के इशारे बिना इस जहाँ में किसी के,
जीवन का नहीं चला स्यन्दन है करता ।
प्राणों का भी प्राण प्राणी पाते सभी त्राण हरि-
बिन कौन प्राणी यहाँ स्पन्दन है करता।।
पास नहीं चन्दन है हरि-भाव-चन्दन है,
धूप दीप बिना ‘दीप’ वन्दन है करता।
आनन्दित हो उठा है हरि दर्श पाके, तव-
नन्दन-सुमन अभिनन्दन है करता।।
-संदीप ‘दीप’

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