Thursday, February 26, 2009

दैनिक जागरण से साभार

आज़ाद मेरे आदर्श हैं किशोरावस्था में लिखे क्रांतिकाव्य आज़ाद-शतक को पढ़्ने के लिये पुन:ब्लॉग पर आएं।
Feb 26, 12:19 pm

नई दिल्ली। अंग्रेजों को नाकों चने चबवाने के चंद्रशेखर आजाद के किस्से हर भारतीय जानता है। आलम ये था कि जब पंडितजी को जिंदा पकड़ने की अंग्रेजों की तमाम कोशिशें असफल हो गईं तो उन्होंने एक अचूक दांव खेला। आजाद को मारने के लिए स्काटलैंड यार्ड से बाकायदा एक शार्प शूटर नाट वावर भारत बुलाया गया।

27 फरवरी, 1931 को आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने साथी से मिलने पहुंचे। मुखबिर की सूचना के आधार पर अंग्रेजों ने उन्हें वहां घेर लिया। आजाद का प्रण था कि अंग्रेज उन्हें कभी जिंदा नहीं पकड़ सकेंगे। और उन्होंने इसे साबित भी कर दिखाया। अंग्रेज उन्हें कभी जिंदा गिरफ्तार नहीं सके। बाद में क्रांतिकारियों के डर से वावर को मुंबई भेज दिया गया।

तत्कालीन आईजी की पुस्तक नो टेन कमांडमेंट्स

ब्रिटिश पुलिस के तत्कालीन आईजी एच.टी. हालिंस की पुस्तक 'नो टेन कमांडमेंट्स' में इसका विवरण मिलता है। पुस्तक के अनुवादक नरेश मिश्र के मुताबिक 'नो टेन कमांडमेंट्स' में आजाद के शहीद होने के बाद वावर को मुंबई भेजने की घटना का उल्लेख है। हालांकि किताब में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि आजाद ने खुद को गोली मारी थी।

जिंदा नहीं पकड़ सके अंग्रेज

मिश्र बताते हैं कि पुलिस कानपुर से ही आजाद का पीछा कर रही थी। उन्हें पता था कि आजाद अचूक निशानेबाज हैं और अपने पास हमेशा पिस्तौल रखते हैं। 27 फरवरी को अल्फ्रेड पार्क में अपने एक साथी से मिलने पहुंचे आजाद को अंग्रेजों के एक मुखबिर ने देख लिया। सूचना मिलते ही वावर टीम लेकर अल्फ्रेड पार्क पहुंच गया। अपने घिरने का एहसास होते ही आजाद ने साथी को वहां से रवाना किया और अकेले ही मोर्चे पर डट गए। जैसे ही वावर उनके पास पहुंचा, आजाद ने उसके हाथ में गोली मार दी। अंग्रेजों और आजाद के बीच 25 मिनट तक गोलीबारी चली। आखिर जब उनके पास सिर्फ एक ही गोली बची तो उन्होंने खुद को गोली मार ली।

अंग्रेजों को भारी पड़ी 15 डंडे मारने की सजा

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को झाबुआ [मध्यप्रदेश] में हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी व माता का नाम जगरानी देवी था। 15 साल की उम्र में उन्हें पहली और आखिरी बार ब्रिटिश सरकार का विरोध करते पकड़ा गया। जज के सामने उन्होंने अपना नाम आजाद बताया। उन्हें छोड़ दिया गया, लेकिन इससे पहले 15 डंडे मारने की सजा दी गई। बस यहीं से शुरू हुआ चंद्रशेखर आजाद का क्रांतिकारी सफर। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य रहे आजाद ने ही काकोरी ट्रेन लूट और लाला लाजपत राय के हत्यारे सांडर्स को मारने की योजना तैयार की थी।

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