Saturday, February 14, 2009

प्यार करते हैं बेइन्तहा

प्यार करते हैं बेइन्तहा इम्तहां चाहे ले ले जहाँ।
हम ना होंगे ज़ुदा जाने जाँ हम हैं दो जिस्म और एक जाँ॥

चाँदनी चाँद में ज्यों बसी,फूल में है ज्यों मीठी हँसी।
त्योंही उर में बसी उर्वशी छोड़कर तुम ये सारा जहाँ॥

सुन हकीकत ऐ हुस्ने परी,मैं हूँ शायर हो तुम शायरी।
चश्मो-दिल में हो कब से मेरी कह नहीं सकती है ये जुबाँ॥

बिन पिए भी नहीं होश है,क्या नशीला ये आगोश है।
जाम-ए-लब में भरा जोश है मिलगये हैं ज़मीं आसमां॥

मय मयस्सर हुई ही नहीं हमको दुनिया में ऐसी कहीं।
जैसी तुमने पिलाई हसीं उम्रभर के लिए मेहरबाँ॥

गुलबदन का बदन अनछुआ एक भँवरे ने जब आ छुआ।
बदहवासी में ऐ साकिया मिट गये सरहदों के निशां॥

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