Sunday, January 18, 2009

फुँफकारती कुण्डलियाँ

आचार्य संदीप कुमार त्यागी "दीप"

गूफ़लाल के गैंग में आ पहुँचे ब्लफलाल।
सोचा दोनों ने चलो हो लें मालामाल॥
हो लें मालामाल, काम छेड़ा फाईनेंसी।
नोट छापने लगे भई! अच्छी एजेंसी॥
धंधा अच्छा, गंदा है, कुछ ना किया खयाल
रेड़ पड़ी पकड़े गये गूफ़लाल ब्लफ़लाल।

चलाचला चक्की अकल गई जेल में जाग।
पछताये, खुद फोड़कर दोनों अपने भाग।।
दोनों अपने भाग, जगाने की सोची फिर।
नई गजब तरकीब एक सूझी थी आखिर॥
रिहा जेल से होते ही जा खोला मंदर।
बन बैठे परधान सिकटरी दोनों बंदर॥

अंधी जनता की खुली गाँठ मिली क्या खूब।
रोज मलाई मारते प्रभु आगे धरें दूब॥
प्रभु आगे धरें, दूब गूफ, ब्लफ़लाल निराले।
भाग – “रिया-सत” दे गये, पढ़ें लोग रिसाले॥
मौन “अभय-मुद्रा” धरी संत बन रहे आज।
दोनों की भगवान संग आरती करे समाज॥

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