Saturday, May 8, 2010
माँ
माँ
परमपिता के ध्यान में टिके न लाख टिकाये।
माँ की ममता में मगर मन आनन्द मनाये
होने को भगवान भी, बड़ी कौन सी बात।
“माँ होना” भगवान की भी पर नहीं बिसात॥
मन से किस सूरत हटी मूरत माँ की बोल।
बच्चे से बूड़े हुए माँ फिर भी अनमोल॥
दूह दूह कर स्वयं को किया हमें मजबूत।
कैसे माँ के दूध का कर्ज़ उतारें पूत॥
माँ की ममता की अरे समता नाही कोय।
क्षमता माँ की क्या कहूँ प्रभु भी गर्भ में सोय॥
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बहुत अच्छी लगी कविता !
ReplyDeleteसादर,
अमरेन्द्र