Friday, February 26, 2010

छंद-परिचय:घनाक्षरी

अपने प्रस्तुत काव्य के प्रणयन में ‘‘घनाक्षरी’’ छन्द को चुना है, ‘कवित्त’ और ‘मनहरण’ भी इसी छन्द के अन्य नाम हैं। इसमें चार पंक्तियाँ होती है और प्रत्येक पंक्ति में ३१, ३१ वर्ण होते हैं। क्रमशः ८, ८, ८, ७ पर यति और विराम का विधान है, परन्तु सिद्धहस्त कतिपय कवि प्रवाह की परिपक्वता के कारण यति-नियम की परवाह नहीं भी करते हैं। यह छन्द यों तो सभी रसों के लिए उपयुक्त है, परन्तु वीर और शृंगार रस का परिपाक उसमें पूर्णतया होता है। इसीलिए हिन्दी साहित्य के इतिहास के चारों कालों में इसका बोलबाला रहा है। मैं इस छन्द को छन्दों का छत्रपति मानता हूँ।

3 comments:

  1. बहुत दिन से इस ज्ञान की तलाश थी, आपका आभार.

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  2. संदीप जी

    अभी-अभी आपकी आज़ाद जी पर लिखी रचना के लिये टिप्प्णी लिखी पर ..शायद वह किसी अन्य रचना पर चली गी...कम्प्यूटर का खेल..पर फिर वही बात कहूँगी कि रचना बहुत सुन्दर है...आपकी आवज़ में सुनने पर और भी अच्छी लगेगी

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  3. मुझे यह ज्ञान पाकर बहुत अच्छा लगा----------सादर आभार

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