Thursday, March 12, 2009

भावों का ज्वार

भावों का ज्वार हृदय सागर में उठता है।
मुखचन्द्र तुम्हारा जब खिड़की से दिखता है।।

लहरों सी बाहें उठतीं जिस पल छूने को ।
यह चाँद सा चेहरा तभी तुम्हारा लुकता है।।

हो जाता है मुझपर सवार दीवाना पन।
जानम जब जुल्फों का चिलमन घन झुकता है।।

आँखे कर रहीं बयां मुझसे है इश्क तुम्हें ।
रखने से बन्द जुबान प्यार कहीं छुपता है।।

जल नहीं सकेगा स्नेह इसे दे दो अपना ।
पल पल जल जल कर ’दीप’गजल ये लिखता है।।

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