Wednesday, September 16, 2009

Deep Day poem:I am in between


You can’t see me because I am not a shining star
You are looking in the wrong place
I am in between.

I can only be seen when everything becomes unseen
What did you mean when you asked if I’ve been here all along?
Like an infinite song.

Mountains are trying to touch me
Birds are flapping for me
Dancing willows creating grooves
With romantic waves of green and blues.

You can see me just beyond the horizon
Under the sea amongst the pearls
I appear, oh my dear deeply in one’s heart.

Monday, September 14, 2009

हिंदी दिवस और महाकवि घासलेट

गतवर्ष हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में समायोजित कविसम्मेलन
में "ढंग का एक दोहा भी न लिख सकने की क्षमता वाले"
कुछ तथाकथित महाकवियों में हुए कलयुगी महाभारत से उत्तप्त
हुआ दीप इस व्यंग के माध्यम से अपनी तपिश प्रगट करता है-
हो सकता है कोई अभी भी जल उठे!किंतु दीप जलाने के लिये
नहीं बल्कि रोशनी करने के लिए है--------


बिना हिचक अविरल प्रवाह से लगातार पढ़ते जाते हैं,
घंटों ही कुछ का कुछ गुरुघंटाल अरे!घढ़ते जाते हैं।
अड़ जाते हैं लड़जाते हैं,सब पर भारी पड़ जाते हैं,
वंशी नहीं वंश वादन सा कर्णकुहर सुन भन्नाते हैं।
क्योंकि विश्रुत महाकवि हैं अपनी ही अपनी गाते हैं,
घटिया से घटियातम कविता पुन: पुन: अरे दोहराते हैं।
हिंदी मंचों पर जब कविश्री घासलेट जी चढ़ जाते हैं॥१॥

टूट सभी सीमायें जाती घड़ियाँ घूर घूर रह जातीं,
आँखें शर्म लिहाज़ छोड़ केवल संकेतों में चिल्लातीं।
आयोजक हैरान परेशाँ हाल देख करके जन जन का ,
संयोजक को संप्रेषित कर, देते जिम्मा संयोजन का।
मंचपटल पर संयोजक भी खिन्नमना पर मुसकाते हैं,
हिम्मत कर ध्वनिविस्तारक की तरफ़ हाथ औ लपकाते हैं।
ज्योंहि त्योंहि उनको दर्शक दीर्घा में लुढ़का पाते हैं॥२॥

वाह निकलना दूर किसी के मुख से हाय तलक ना फूटे,
नीरव स्तब्ध हरेक श्रोता कवि मूक बधिर बन कर रस लूटे।
बाहुबली भी दबा पूँछ खर्राटों में खोने लगते हैं,
पूरे हफ़्ते की थकान वश बस सब ही सोने लगते हैं।
यदि भोजन का समुचित पूर्वप्रबंध सभासद्‍ पा जाते हैं,
मुख्यातिथि अध्यक्ष सहित सबको ही चकमा दे जाते हैं।
औ केवल कवि घासलेट श्रोता कवियों पर छा जाते हैं॥३॥

केवल कविता ही हिन्दी कवि सम्मेलन में पढ़ते होंगे,
हमने अ सोचा क्योंकर कोई गद्य विधा में पड़ते होंगे।
लेकिन गद्यविधा के हमें मिले विविध पद्यात्मक मोड़,
नाटक निबन्ध कहानी क्या सीक्वल उपन्यास की होड़।
ऐसी लम्बी लम्बी रबड़ छंद में थीं कविता स्वच्छंद,
गद्यात्मक शैली में सस्वर सुन कर कान हुए बस बंद।
असली श्रोता ऐसे कैसे हिंदी कवि से बच पाते हैं॥__४॥

बरबस ही मन हिंदी दिवस पर हिन्दी का रोने लगता है,
प्रेमचंद,द्विवेदी युगीन सपनों बस में खोने लगता है ।
भारतेन्दु नानक,कबीर,तुलसी,रहीम की पौध अमर,
सांकृत्यायन,पद्मसिंह,आचार्य शुक्ल हरिऔध अमर।
कितने अच्छे साधक मेरे पंत निराला से बहुतेरे,
गुप्त-बंधु,जय-शंकर,दिनकर से कैसे थे चतुर चितेरे॥
बच्चन,माखन,महादेवी के याद काव्य सद्‍गुण आते हैं॥५॥

८अक्टूबर२००८

Sunday, September 13, 2009

हिंदी दिवस की शुभकामनाय़ें



भारतमाता के भव्यभाल की है बिन्दी हिंदी
पहचान आन बान शान स्वाभिमान है।
न्यारी प्राणप्यारी प्रजा सारी बलिहारी भव्य-
भाषा है हमारी दिव्य-देश हिंदुस्तान है॥
चमाचम चमकेगी चारु चंद्रिका सी शुचि
रुचिरा गंभीरा गिरा गरिमा महान है।
देवभाषा सुता भद्रभाव भूषिता है हिन्दी
होनी विश्वभाषा अरे दीप का ऐलान है॥२॥

नहीं मात्रभाषा बल्कि मेरी मातृभाषा प्यारी
हिंदी हिंदुस्तान का हृदय हुलसाती है॥
खुसरो अमीर खानखाना वो अब्दुर्रहीम
सूर तुलसी कबीर काव्य कुल थाती है॥
भूषण भणे हैं इसी भाषा में कमाल लाल
छ्त्रसाल-यश, शिवा-बावनी गुँजाती है॥
खड़ीबोली लल्लूलाल भारतेंदु से निखर
विश्वभाषा बन रोम रोम पुलकाती है॥१॥

Wednesday, September 2, 2009

राष्ट्रभाषा गान

राष्ट्रभाषा गान

जय जय हृदय हुलासिनी हिंदी
विश्वविकासिनीभाषा
अभिलाषा अखिल राष्ट्र भारत की
नित्यनवलपरिभाषा
कल्याणि! वाणी नव आशा
जननि! जन्मभूभाषा।
तव स्वाध्याय से जागें
सब उन्नति पथ लागें
गायें तव गुणगाथा
जन गण मन उल्लासिनीहिंदी
सरल सुभाषिणी भाषा
जय हे! जय हे! जय हे!
जय जय जय जय हे!!