Friday, April 16, 2010

मुक्तक

हमारी ही तरह अहसास ए उल्फत यार तुमको भी,
हुआ था वाकई सच्चा क्या हमसे प्यार तुमको भी॥
नहीं लगता नहीं लगता ये बदले देखकर तेवर,
बसाना था मोहब्बत का नया संसार तुमको भी ॥

मुहब्बत को तिजारत के तराजू में धरा तुमने।
वजह है कौनसी माशूक जो बाजू करा तुमने॥
हवस में हुस्न की, जेबें जो खाली कर रहा तुमपर।
उसी शातिर को सर आँखों पै हाय क्यूं धरा तुमने॥

नहीं है इश्क जो शर्तों पै समझौतों पै टिकता है।
नहीं है इश्क जो जिस्मों की गर्माहट में सिकता है॥
रुहानी असलियत है इश्क ,न तजवीज दुनियावी
तभी तो यार ये बाजार में बिल्कुल न बिकता है।

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